हरि ॐ|
६ मई १९८१.
शाम के समय सांगली जिले के माधवनगर जैसे छोटे गांव में मेसेज आया, आज रात प.पू.स्वामी चिदानंदजी महाराज सांगली आ रहे है| वैसे स्वागत की तैय्यारी पहलेसेही जारी थी| सांगली के एक श्रद्धालू धनिक जो दिव्य जीवन संघ सांगली शाखा के सचीवभी थे, उनके घर में स्वामीजी का रहनेका इंतजाम किया था| दूसरे दिन सुबह माधवनगर में श्री.भ.रा.नाईकजी के ..याने हमारे घर पाद्यपूजा सुनिश्चित थी|
रात साढेबारा बजेसे दिव्य जीवन की शाखा के हम कुछ सदस्य सांगली की सीमापर स्वागत के लिये खडे थे| एक बजे के बाद स्वामीजी की कार सांगली की सीमापर रुकी| सब लोगोंने मिलकर आपके नामकी जयजयकार की| लेकिन उनसेभी बडी आवाज में स्वामीजी ने गुरुदेव स्वामी शिवानंदजी और दिव्य जीवन संघ की जयजयकार की| आपके अकेले की आवाज में हम सब की आवाज गुम हो गयी| हम सब सचीवजी के घर पहुंचे| स्वामीजी ने तुरंत संकीर्तन शुरु किया| साठ साल से जादा उम्र होने पर भी ना आप थके थे, ना पांच घंटोंके सफर से परेशान|
मेरे पिताजी कही काम कर रहे थे, और स्वामीजीने उनके बारेमें बोलते बोलते मुझे पूछा, “नाईकजी के शरीर की आयु क्या होगी?”
अगर हम ऐसे बोलते, तो बहुत ही कृत्रिम और विचित्र लगता| लेकिन स्वामीजी का यह पूछना बहुत ही सामान्य,सरल, अकृत्रिम लगा, क्योंकि उनकी यह धारणा बहुत ही पक्की थी, कि हम यह शरीर नहीं है| हम आत्मा है…जो जन्म मरण रहित है…तो आयु सिर्फ शरीरकीही हो सकती है|
दूसरे दिन सुबह हमारे घर स्वामीजी पधारे| लेकिन खुद की पाद्यपूजा करनेसे आप’ने इन्कार किया| घर में छोटी पादुकाएं थी| उन्हीकी पूजा हुई और स्वामीजी सिर्फ ध्यान लगाकर उपस्थित रहे| पूजा के लिये बहुत लोगों को नहीं बुलाया था| स्वामीजी के समय का भी खयाल रखना था और घर की क्षमता का| अपेक्षित लोगों को बडी मात्रा में मिल सके इतना प्रसाद बनाया था| लेकिन लोग आते ही रहे| घर तो भर गया, कुछ आंगन में खडे थे| सबको प्रसाद कैसे देंगे? माँ चिंतित थी| लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी, क्यों कि पूजा में थी| लेकिन स्वामीजी ने शायद अंदर बैठे बैठे सब जान लिया| अपने स्वीय सहायक रामस्वरूपजी से कहकर आप’ने पास की दुकान से बहुत बिस्कुट्स मंगवाये और सबको प्रसाद मिल गया|
पूजा में बैठे एक भक्त जाखोटियाजी बहुत ही अधिकारी थे| भगवान का नाम ही उनके लिये श्वास था| एक भी पल उन्होंने नाम के बिना नहीं गवाया था| जाखोटियाजी ने इच्छा व्यक्त की, स्वामीजीका चरणस्पर्श हमारे घर को भी हो| लेकिन शाम पाँच बजे फिर सांगली में स्वामीजी का जाहिर प्रवचन था| रामस्वरुपजीने स्वामीजी के विश्राम का खयाल रखते हुए जाखोटिया जी को मना किया| स्वामीजी पूजा के बाद सांगली लौट आए|
उसी दिन मुझे मंत्रदिक्षा दी| विधिपूर्वक दिक्षा देने में कुछ समय चला गया| उसी समय स्वामीजी को जाखोटियाजी के बारेमें पता चला, तो आप फिर माधवनगर लौट आए| जाखोटिया जी के घर गये| सब लोगोंसे मिले और फिर सांगली आ कर प्रवचन के स्थल पहुंचे|
आज इस पावन घटना को चालिस बरस पूरे हुए|