Chidananda Chalisa
ॐ नमो भगवते चिदानंदाय ।
चिदानंद – चालिसा
श्री गुरु ब्रह्मदेव है, गुरु है विष्णु स्वरूप ।
गुरुही है शिव महादेव गुरु परब्रह्मस्वरूप ॥
चिदानंदजी की जय जय हो ।
जय गुरुदेव, चिदानंद स्वामी ।
जय करुणामय, अंतर्ज्ञनी ॥१॥
शिवानंद के प्राण बहिश्वर।
हे भक्ती औं ज्ञान के सागर ॥२॥
श्री निवास औं देवि सरोजिनी।
धन्य तुम्हारे जनक औं जननी ॥३॥
घर लक्ष्मी का निवास निर्मल ।
संस्कारोंसे मन थे उज्चल ॥४॥
उसी वंश के दिव्य धरोधर।
बन के आये बालक श्रीधर ॥५॥
विद्यावान, विनम्र, सद्ुणी।
समदर्शी, श्रद्धालु दानी ॥६॥
जीवनरेखा राजपुत्रसी
छोड बने त्यागी संनन््यासी ॥७॥
शिवानंद सदुरु थे ज्ञानी।
शिवस्वरूप साकार, विरागी ॥८ ॥
देख शिष्य की अद्भुत प्रगती।
नाम दिया श्री चिदानंदजी ॥९॥
दिव्य जीवन संघ के सारे।
तत्त्व चिदानंद रुप है धरे ॥१०॥
अतिलीन रहते सेवामें |
मातृहृदय सा प्रेमभी मनमें ॥ ११॥
देह कर्म में जुटा हुआ था।
ध्यान न अंतर में छूटा था॥१२॥
आँख खोल देखी जब दुनिया।
आत्मतत्त्वत कणकण में पाया ॥१३॥
काम, क्रोध और विषय भी सारे।
दूर रहे डरके बेचारे | १४॥
धर्माचार जो कठिन, गहन था।
शिवानंद ने सुलभ किया था॥१५॥
इसी सीख का फिर संस्थापन।
करते बीता सारा जीवन ॥१६॥
देश-विदेश के सारे ज्ञानी
हाथ जोडते सुनकर बानी ॥१७॥
दीन दुखी जो जग से हारे।
तुम्ही तो उनके एक सहारे ॥॥१८ ॥
अनाथ हो या कुष्ठरोगी हो।
तुम उनके भगवान बने हो ॥१९॥
परपीडा ना तुम सह सकते।
अपनी तकलीफें ना गिनते ॥२० ॥
भेदभाव छूता ना मन को
सिर्फ मानते मानवता को ॥२१॥
काल औं अंतर से भी परे हो।
परब्रह्म तुम देहधारि हो ॥२२॥
तुममें पाये भक्त तुम्हारे
इष्ट देवता अपने प्यारे ॥२३॥
तुम करुणा की मंगलमूर्ती
तुम आशाओंकी हो पूर्ती ॥ २४॥
हम तो तुम्हारे बालक ही है।
तुम बिन हमरा कोई नहीं है॥२५ ॥
अहंकारने हम को घेरा।
काम-क्रोध का मन में डेरा ॥ २६॥
मन-शरीर संसार का बंदी।
आशा-तृष्णा भरी भवनदी ॥२७॥
कर्म भंवर में डूबी नैय्या।
तुम्ही बचाओ बनके खिवैय्या ॥ २८ ॥
अब भी लगती माया प्यारी।
अभी न मेरी ममता हारी ॥ २९॥
उस पार मुक्ती का डेरा।
त्रस्त हृदय को लगता प्यारा ॥३० ॥
इस उलझनमें फँसा है जीवन।
रेत सा फिसले हाथ से क्षण क्षण ॥३१॥
तुम्ही लाज रखना अब मेरी।
देकर मन का शांती सारी ॥३२॥
अभ्युदय दो, दो निःश्रेयस।
प्रेयस भी दो, दे दो श्रेयस ३३ ॥
तुमबिन कहाँ और मैं जाऊँ।
किसको मन की बात बताऊँ ॥ ३४ ॥
अब आओ बनकर तुम माता।
गोद में लेलो बालक रोता ॥ ३५॥
हृदयकमल में उठी प्रार्थना।
हर अक्षर की तुम ही प्रेरणा ॥ ३६॥
देना आशिष इस रचना को।
जो भी पढ़े यह स्मरकर तुमको ॥ ३७॥
सफल मनोरथ उसके होवे।
चारों पुरुषार्थोको पावे ॥३८ ॥
हर संकट क्षण में कट जायें।
असीम वो मन की शांती पाये ॥ ३९॥
बार बार लो प्रणाम मेरा।
शीशपर रहे हाथ तुम्हारा ॥४०॥
महाराजाधिराज सदुरु परब्रह्म योगिराज श्री
स्वामी चिदानंदजी की जय ॥
श्री स्वामी चिदानंदार्पणमस्तु ॥
रचना – सौ. राजलक्ष्मी देशपांडे