स्वामीजीने शराब की आदत छुड़वाई

Swami Chidananda – Eternal Storiesस्वामीजीने शराब की आदत छुड़वाई
Rajlaxmi Deshpande asked 4 years ago

हरि ॐ!

आश्रम के प्रिंटिंग प्रेस में पास के ही हृषिकेश गांव हे लोग काम करने आते है| ये लोग साधक तो है नहीं, बस आश्रम में नौकरी करते है| तो जाहिर है, सामान्य लोगोंकी तरह इनमें कुछ कमियां तो होंगी|
उनमें से एक आदमी को शराब की लत थी| हर शाम प्रेस से छुट्टी होने के बाद उसके कदम एक शराब की दुकान पर जाते थे| उसके सहयोगी कर्मचारी उससे बहुत नाराज थे| उन्होनें एक दिन तय करके प. पू.स्वामी चिदानंदजी से मुलाकात का समय मांगा और आपको उस शख्स के बारे में कहा| स्वामीजी ने पूछा,”उसकी duty कब खत्म होती है?”

“शाम पांच बजे|”

“तो ठीक है,मैं कल शाम पांच बजे प्रेस में आऊंगा|” स्वामीजी ने कहा|

सब को लगा, चलो..अब तो इसकी नौकरी गयी| दुर्गुण हे भरा आदमी आश्रम में स्वामीजी कतई नहीं आने देंगे|

दूसरे दिन शाम पांच बजे स्वामीजी प्रेस में आये| उस व्यक्ती से मिले,और बोले, “चलो,आज हम जरा टहलने जाएंगे| मेरे साथ आज कोई नहीं है| तुम आओगे?”

क्या कोई स्वामीजी को ना बोल सकता है? दोनो निकल पडे| उसी रास्ते हे जहां हे वह हररोज घर जाता था, और बीच में शराब की दुकान पर ठहरता था| स्वामीजी उससे बहुत सारी बातें करते रहे| वह शराब की दुकान आयी| स्वामीजी ऐसी बाते करते रहे, जैसे आपको कुछ मालूमही नहीं| वह आदमी बार बार दुकान की ओर देखता था| आगे बढने के बाद भी पिछे मुडमुड कर दुकान की ओर देखता रहा| स्वामीजी यह सब जानकरभी अनदेखा करके उसके साथ चल रहे थे| उसे उस के घर में पहुंचाकर बोले, “चलो,अब मैं वापस जाता हूं| तुम्हे बाहर आनेकी जरूरत नहीं|”

ऐसा हररोज होता रहा| बोलते बोलते स्वामीजी उसे सामान्य रूप से शराब से होनेवाले दुष्परिणाम समझाते रहे| लेकिन उस की आदत के बारे में कुछ नहीं कहा| धीरे धीरे उसका दुकान की ओर देखना कम होते होते बंद हो गया| फिर एक दिन स्वामीजी ने रास्ते में कहा, “अरे, तुम्हारी वह दुकान तो पीछे पड गयी| तुमने देखाभी नहीं!”….

शरम हे उसने कहा, “स्वामीजी, आपके साथ अच्छा लगता है…आपकी बातों का असर है, कि अब पीने का मन नहीं होता| जब आप साथ नहीं होते, तब भी मैं नहीं देखता उस ओर|”

उसे बहुत सारा प्यार और प्रसाद देके स्वामीजी ने उसके साथ टहलना बंद किया| वह आदमी प्रेस की नौकरी करता रहा|

दवाखाने में तो मरीज ही आएंगे ना… स्वामीजी हमेशा कहते थे, हम यहाँ दवा देने बैठे है,दोष देने नहीं|

श्रीमद्भगवद्गीता के बारहवें अध्याय के अंतिम आठ श्लोकोंको स्वामीजी अमृताष्टक कहते हैं| उसमें भगवान के प्रिय भक्त के लक्षण है| पहला है, “अद्वेष्टा सर्व भूतानांम्” स्वामीजी ने कभी किसी दुर्गुण भरे व्यक्ती का द्वेष नहीं किया| उसकी कमजोरी समझ ली और प्यार से दूर की..

(२०११में आश्रम में स्वामीजी से संबंधित लोगोंकी मुलाकातें मैंने ली थी| तब आपके एक स्वीय सहायक स्वामी चित्स्वरूपानंदजी ने बताया हुआ किस्सा)
राजलक्ष्मी देशपांडे

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